अनुष्ठान
अनुष्ठान किसी भी मास में किया जा सकता है। तिथियों में पन्चमी, एकादशी, पूर्णमासी शुभ मानी गयी हैं। पन्चमी को दुर्गा, एकादशी को सरस्वती, पूर्णमासी को लक्ष्मी तत्त्व की प्रधानता रहती है। शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष दोनों में से किसी का निषेध नहीं है, किन्तु कृष्णपक्ष की अपेक्षा शुक्लपक्ष अधिक शुभ है।
अनुष्ठान आरम्भ करते हुए नित्य गायत्री का आवाहन करें और अन्त करते हुए विसर्जन करना चाहिए। इस प्रतिष्ठा में भावना और निवेदन प्रधान है। श्रद्धापूर्वक ‘भगवती, जगज्जननी, भक्तवत्सला माँ गायत्री यहाँ प्रतिष्ठित होने का अनुग्रह कीजिए’ ऐसी प्रार्थना संस्कृत या मातृभाषा में करनी चाहिए। विश्वास करना चाहिए कि प्रार्थना को स्वीकार करके वे कृपापूर्वक पधार गयी हैं। विसर्जन करते समय प्रार्थना करनी चाहिए कि ‘आदिशक्ति, भयहारिणी, शक्तिदायिनी, तरणतारिणी मातृके! अब आप विसर्जित हों’। इस भावना को भी संस्कृत में या अपनी मातृभाषा में कह सकते हैं। इस प्रार्थना के साथ- साथ यह विश्वास करना चाहिए कि प्रार्थना स्वीकार करके वे विसर्जित हो गयी हैं।
हिन्दू धर्म में धार्मिक अनुष्ठानों की विविधता है और ये अनुष्ठान विभिन्न मासों में किए जा सकते हैं, विशेषकर पौर्णिमा, अमावस्या, और विभिन्न त्योहारों के दौरान।
पूर्णिमा अनुष्ठान:
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूर्णता में होता है, इसलिए इस दिन को धार्मिक कार्यों के लिए उत्कृष्ट माना जाता है।
अमावस्या अनुष्ठान:
अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा एक साथ होते हैं, और इसलिए भक्ति और ध्यान के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है।
त्योहारों के दौरान:
विभिन्न हिन्दी त्योहारों में भी अनुष्ठान किया जा सकता है, जैसे दीपावली, होली, नवरात्रि, गणेश चतुर्थी, आदि।
महीने के अनुष्ठान:
विशेष मासों में भी अनुष्ठान किया जा सकता है, जैसे श्रावण मास, कार्तिक मास, आदि।